दिलों को पिरोने वाला अब वो तागा नहीं मिलता
रिश्तों में नमीं प्यार में सहारा नहीं मिलता
यूँ ही बैठे रहो, चुप रहो, कुछ न कहो
लोग मिल जातें हैं दोस्ती का इशारा नहीं मिलता
रेत बंद हाथों से फिसलती जाती है
वक्त जो टल जाता है दोबारा नहीं मिलता
डूब जाने दो दरियाओं में मुझे ऐ हमदम
अब वो सुकून भरा किनारा नहीं मिलता
Originally published at
Swati Sani.
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